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छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले में स्थित दो ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल – खर्राघाट और शंकर मंदिर – न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र हैं बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत

खर्राघाट और शंकर मंदिर: मुंगेली की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर


प्रितेश अज्जु आर्य ✍️मुंगेली— छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले में स्थित दो ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल – खर्राघाट और शंकर मंदिर – न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र हैं बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत के अमूल्य प्रतीक भी हैं। ये दोनों स्थल न सिर्फ मुंगेली बल्कि दूर-दराज के श्रद्धालुओं को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
*खर्राघाट: साधना, शांति और साधुओं की तपस्थली*
मुंगेली के समीप आगर नदी के किनारे स्थित खर्राघाट एक प्रसिद्ध साधना स्थल है। कहा जाता है कि 1890 में शैव सम्प्रदाय के सिद्ध महात्मा महान शिवोपासक महादेव जी यहां आए थे। उन्हें इस स्थान की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य से गहन अनुभूति हुई, जिसके बाद उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थापना की। महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रारंभ हुआ मेला आज तक एक परंपरा के रूप में जीवित है।
   खर्राघाट “गणेशवर महादेव” के नाम से भी प्रसिद्ध है।  गोरखनाथ सम्प्रदाय के संत ध्यान, साधना और योग की गहन क्रियाओं में लीन रहते थे। नदी का किनारा, वृक्षों की छाया और वातावरण की शांति इसे एक मनोरम तपस्थली बनाती है।
    यहां नीम, बरगद और अकेला जैसे विशाल वृक्षों के नीचे शिव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, दुर्गा मंदिर, काली माता मंदिर और हनुमान मंदिर भी स्थित हैं। श्रद्धालु नदी के पास स्थित मंदिरों में दर्शन कर आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
*नागा साधुओं की समाधियाँ और “बाबा दुलान” का पवित्र स्थल*
खर्राघाट के समीप स्थित घाट पर नागा साधुओं की समाधियाँ भी विद्यमान हैं। यहां एक प्राचीन त्रिशूल और चबूतरा भी है जिसे आज भी साधु-संत ध्यान व समाधि के लिए उपयोग करते हैं। नदी के तट पर स्थित शिव मंदिर के पीछे “बाबा दुलान” की समाधि है। इस घाट के जल की गहराई इतनी अधिक है कि कोई इसमें उतरने के बाद वापस नहीं आ सका, इसी कारण इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। वर्तमान में इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय जिला प्रशासन द्वारा लिया गया है।
*शंकर मंदिर: मुंगेली का 250 वर्षों पुराना शिवधाम*
शंकर मंदिर, मुंगेली नगर का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। लगभग 250 वर्षों पुराना यह मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है। यह मंदिर न केवल स्थापत्य की दृष्टि से विशेष है बल्कि इसकी धार्मिक महत्ता भी अत्यंत गहरी है। यह मंदिर ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में स्थित है जो वास्तुशास्त्र के अनुसार सर्वोत्तम स्थान माना गया है। यहाँ के गर्भगृह में शिवलिंग, गणेश और कार्तिकेय की मूर्तियाँ विराजमान हैं। गर्भगृह के द्वार पर श्वेत और अश्वेत द्वारपाल तथा मंदिर के पीछे हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है। पास में श्री खेमेंश्वर बाबा की समाधि है, जो प्राचीन नागा अखाड़े से जुड़े माने जाते हैं। यह मंदिर धार्मिक साधना के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता का केंद्र भी रहा है।
     यह मंदिर पंडा परिवार द्वारा संचालित किया जाता है। वर्तमान में मंदिर के मुख्य पुजारी गोस्वामी हैं जो परंपरागत रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना करते हैं।
*मंदिर में धार्मिक आयोजन और जनसमूह की भागीदारी*
शंकर मंदिर में रामनवमी, जन्माष्टमी, श्रावण सोमवारी, महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर विशेष पूजन और कीर्तन, प्रवचन, आरती कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिसमें मुंगेली सहित आसपास के गांवों के हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। यहां धर्मशाला में बाहर से आए अतिथियों के लिए ठहरने की भी उत्तम व्यवस्था है।
*आध्यात्मिकता और विरासत का संगम*
मुंगेली के खर्राघाट और शंकर मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की आध्यात्मिक परंपरा और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। ये स्थल आज भी लोगों के जीवन में शांति, भक्ति और आस्था का संचार कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा इन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय स्वागतयोग्य कदम है।

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Pritesh Arya

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