वर्चुअल जेल, डिजिटल अरेस्ट और नकली अफसर, किस तरह लोगों को लूट रहे साइबर ठग!


खास खबर प्रीतेश अज्जू आर्य ✍🏻सोशल मीडिया के जमाने में डिजिटल अरेस्ट” साइबर ठगी का एक नया तरीका बन गया है। ठग खुद को पुलिस व ईडी, सीबीआई के बड़े अफसर बताकर फोन करके जेल भेजने की धमकी देते हैं। इससे बचने के नाम पर बैंक खातों में ऑनलाइन पैसे जमा करने के लिए दबाव बनाया जाता है। इन दिनों लोग डिजिटल ठग के शिकार हो रहे हैं और लाखों रुपए गंवा रहे हैं।

रेंज पुलिस थाने में शहर की 24 वर्षीय छात्रा ने रिपोर्ट दर्ज कराई है कि उसके मोबाइल पर अनजान नंबर से कॉल आया। फोन करने वाला ने छात्रा पर ड्रग्स की तस्करी करने का आरोप लगाया। सीबीआई, ईडी और अन्य केंद्रीय संस्थान में जांच चलने का डर दिखाया। छात्रा के मोबाइल पर गिरफ्तारी और जांच के फर्जी दस्तावेज भी भेजे गए। इसके बाद उनसे जालसाजों ने वीडियो कॉल पर बात भी की थी। डरकर छात्रा ने ठग के खाते पर करीब 10 लाख रुपये जमा कर दी थी। इस प्रक्रिया का कोई कानूनी वजूद नहीं है, लेकिन इसमें ठग खुद को पुलिस या कानून प्रवर्तन एजेंसी का अधिकारी बताते हैं और फिर लोगों से ऑडियो या वीडियो कॉल के

ठग्गू-जी से बचकर रहें डिजिटल अरेस्ट को समझें

कैमरे में दिखाते हैं थाना या कोर्ट का सेटअप

शातिर ठग खुद को असली बताने के लिए लाइव वीडियो कॉल कर फर्जी थाना या कोर्ट का सेटअप दिखाते हैं, इससे आम जनता डर जाती है और उसे लगता है कि सच में किसी केस में फंस गया है। असली पुलिस या जांच एजेंसी कभी भी कैमरे में इस तरह का सेटअप नहीं दिखाती।

जरिए संपर्क करते हैं। वे किसी अपराध में शामिल होने या कुछ गलत करने का आरोप लगाकर पीड़ित को डराते हैं और पीड़ित से कहते हैं कि अगर वह गिरफ्तारी से बचना चाहते हैं, तो उन्हें तुरंत कुछ पैसे या जानकारी देनी होगी। जब पीड़ित डरकर या घबराकर ठग की मांगों को पूरा करता है, तो ठग उसे डिजिटल तौर पर बंधक बना लेते हैं और अधिक पैसे या

जानकारी की मांग करते हैं। ठग कॉल करके खुद को पुलिस अधिकारी या किसी अन्य सरकारी एजेंसी का सदस्य बताते हैं और पीड़ित को यह विश्वास दिलाते हैं कि उसके खिलाफ कोई गंभीर आरोप हैं। वे पीड़ित को गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं, और इसे रोकने के लिए तुरंत पैसे या अन्य व्यक्तिगत जानकारी देने की मांग करते हैं।

इस तरह बचें

डिजिटल अरेस्ट अपराध से बचना है तो आपको किसी भी अनजान नंबर से कॉल आने पर बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पुलिस कभी अपनी पहचान बताने के लिए कॉल नहीं करती और ना ही गिरफ्तारी का ऑनलाइन वारंट भेजती है। पुलिस किसी भी मामले में पैसे की मांग या बैंक की जानकारी की मांग नहीं करती और ना ही कोई ऐप डाउनलोड कर वाइस कॉल या वीडियो कॉल पर बात करती। इसलिए अपनी निजी जानकारी साझा नहीं करनी चाहिए। उनके बोलने पर होटल या किसी कमरे में बंद नहीं होना चाहिए। पुलिस को तत्काल 1930 पर कॉल कर बताएं।

जागरुक हों, डरें नहीं

एसपी रजनेश सिंह का कहना है कि इस तरह के कॉल आने पर जनता को डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसी सच्चाई जानने का प्रयास करना चाहिए। जागरुक होने पर ही इस तरह की ठगी से बच सकेंगे। पुलिस भी लगातार साइबर ठगी या डिजिटल अरेस्ट के केस से बचाने के लिए लोगों को लगातार जागरुक कर रही है


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